Wednesday, March 3, 2010

कब थमेगा बोरवेल मैं बच्चों के गिरने का सिलसिला

पिछले ब्लॉग मैं मैंने आपको बताया की आज़ाद देश मैं आज भी लोग गुलामों की तरह जी रहे है. इसी बात का एक और हिस्सा लेकर मैं आज आपके सामने हाजिर हो रहा हूँ. जो बात मैं आपके सामने रखने जा रहा हु उससे आप खुद कहेंगे की हा आज भी इस देश मैं लोग गुलामों की तरह जी रहे है.

आज मैं आपको उन बच्चों की बातें बताने जा रहा हूँ जो अभी तक बोरवेल के गड्डे मैं गिरे है. आज तक कई सारे बच्चे बोरवेल के गड्डे मैं गिरे है. जिसमे से चंद चुनिन्दा बच्चों को ही जिन्दा बहार निकला गया है. जो बच्चे बोरवेल मैं गिरे है. वह गरीबों के या तो फिर मजदूरों के बच्चे थे. इसी वजह से आज तक बोरवेल बनानेवालों के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाये है. कोई अमीर का बच्चा अगर बोरवेल के गड्डे मैं गिरा होता तो अभी तक कोई ना कोई ठेकेदार की हवा निकाल दी गयी होती. जहाँ तक लोगों का मानना है वहां तक ऐसे मामलों मैं अकस्मात मौत का केस दाखिल कर पुलिस भी सिर्फ ऐसे केसों से अपना पीछा छुड़ाना चाहती हो वही देखा गया है. पुलिस के द्वारा भी ऐसे मामलों मैं कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए है. इससे पुलिस के काम करने के तरीके पर  सवालिया निशान खड़े हो रहे है.

सबसे पहले बोरवेल मैं गिरने के घटना जो मीडिया ने उजागर की वह थी कुरुक्षेत्र से. प्रिंस नामक 5 साल का लड़का खेलते खेलते गाँव मैं बने एक बोरवेल मैं जा गिरा मीडिया ने लगातार प्रिंस की गड्डे मैं गिरने की घटना को दिखाकर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया, और ४८ घंटे की मेहनत के बाद प्रिंस को भारतीय भुमिदल के जवानो ने जिन्दा वापस निकाला. जैसे ही प्रिंस गड्डे से वापस बहार आया तो पूरा देश खुशियाँ मानाने मैं जूट गया. देश मैं मिठाइयाँ बांटी गयी. लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा की अगर प्रिंस को कुछ हो जाता तो इसका जिम्मेदार कौन होता. लेकिन खबर देखकर हसने और रोनेवालों को क्या पड़ी है. उसके बाद मीडिया भी भूल गया और लोग भी की गड्डे बनानेवाले को क्या सजा हुई, या उसके खिलाफ क्या कारवाई की गयी. लेकिन इस बात को जानने की लोगों को क्या पड़ी है. इसी बात से पता चलता है, की लोग आज भी गुलामी मैं जी रहे है. गुलामी इस तरह कि की मीडिया ने लोगों को जो दिखाया वही लोगों ने देखा लेकिन उसके बाद क्या हुआ यह जानने की कोशिश नहीं की गयी.

इसके बाद भी देश मैं बच्चों का बोरवेल के गड्डे मैं गिरने का सिलसिला चालू रहा, जैसे की लहराकपुरा उत्तरप्रदेश मैं १५० फीट गहरे गड्डे मैं सोनू नाम के लड़का गिरा उसे भी आर्मी के जवानों ने २४ घंटे की मस्सक्कत के बाद जिन्दा बचाया. फिर ढाई साल का दारावत प्रसाद नामक लड़का ३० फीट गहरे गड्डे मैं गिरा लेकिन उसे कर्मियाँ जिन्दा नहीं बचा सके.  फिर ४ साल का साहिल जो शाहपुरा का रहनेवाला लड़का २५० फीट गहरे गड्डे मैं गिर गया उसे भी बचाने के लिए आर्मी की मदद मांगी गयी आर्मी ने काफी मदद भी की लेकिन बच्चे को बचाया नहीं गया.

फिर गड्डे मैं गिरने की बारी आई पंकज नामक भिलवारा के लड़के की. भिलवारा के इस लड़के ने ब्रह्माजी से  लम्बी जिन्दगी लिखाई  होगी  तो २५० फीट गहरे गड्डे मैं गिरने के बावजूद भी बच गया. ४८ घंटे से भी ज्यादा समय की लम्बी कामगिरी के बाद बच्चे को गड्डे से छुड़ाया गया. इस वक्त भी आर्मी ने काफी मदद की और बच्चे की जिन्दगी बचायी गयी. अब बात करते है निमेडा राजस्थान के सूरज की. १४० फीट गहरे गड्डे मैं गिरे सूरज को बचाने के लिए पहले स्थानीय प्रशासन ने काफी काम किया लेकिन सूरज को बचाने ने के लिए यह काम कम था तो उन्हें भी इस वक्त आर्मी की मदद मंगनी पड़ी और आर्मी ने इस समय भी बच्चे को बचाया. आर्मी हर बार बच्चे को बचाना ने मैं सफल नहीं हुई है. अमरेली मैं गिरे बच्चे को बचाने के लिए भी मदद मांगी थी लेकिन किस्मत से बच्चा नहीं बच शका.  

हाल ही मैं वापी के पास वटार नामक गाँव मैं भी सुनील नाम का एक मजदूर का लड़का बोरवेल मैं गिरा. सुनील की माँ बोरवेल से पीछेवाले हिस्से मैं लकड़ियाँ काट रही थी माँ से दूर खड़े सुनील ने माँ के पास जाने की सोची और नादान बालक बोरवेल से गड्डे से अंजान था और सीधा जा गिरा ८० से ९० फीट के गड्डे मैं जहाँ पहले से हो २० फीट के करीब पानी था. जैसे ही स्थानीय प्रशासन को इस बात की खबर हुई तो सबसे पहले पुलिस और अग्नि शमन  दल के जवान वहां पहुंचा. उन्होंने सुनील को बचाने के लिए दूसरा गड्डा खोदना भी शुरू किया १७ घंटों की कामगिरी के बावजूद भी वह इस मैं सक्षम नहीं दिखे. फिर सूरत से डिसास्टर की टीम को बूलाया गया. वह टीम ने आकर सुनील के तिन घंटे मैं ही बहार निकाला. न्यूज़ पेपर और मीडिया मैं देख कर लोग इस घटना को भी भूल गए. पुलिस ने भी अकस्मात मौत का केस रजिस्टर कर फाइल को बांध करने की कोशिश की.

इतनी सारी घटना हो जाने के बाद भी आज़ाद देश मैं गुलामों की तरह जीने के आदि हुए लोग अभी अभी भी आगे आकर कुछ कहना नहीं चाहते है. क्योंकि इस देश मैं जितने भी लोगों के बच्चे गड्डे मैं गिरे है. उसमे से एक भी बच्चा अमीरों का नहीं होने के कारण लोग आगे नहीं आ रहे है. नहीं प्रशासन इस घटना को रोकने के लिए कुछ कदम उठा रही है.

ऐसे गड्डे को बनाने के बाद खुला छोड़ने के बाद अगर सुनील के जैसा हादसा होता है. उनके खिलाफ तो मर्डर का केस दाखिल कर कड़ी से कड़ी करवाई करनी चाहिए तब ही ऐसे हादसों को रोका जा सकता है.

1 comment:

  1. ખુબ જ સરસ લખાણ છે.. પણ જો તેમા વાપીમા જે ઘટના બની તેનો ફોટો લગાવ્યો હોત તો વધારે નિખાર આવતે લખાણ્મા....

    અભિજિત ભટ્ટ...

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