Tuesday, June 29, 2010

महंगाई मार गई

बाकि कुछ बचा तो, महंगाई मार गई !

सरकारी एजेंसिया देशभर मैं बढ़ रही महंगाई को काबू करने मैं नाकाम दिख रही है, वाही महंगाई से आम आदमी को एक समय की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है. पैसेवाले  और पैसेवाले बन रहे है तो गरीबों को तो रोज  कमाओ रोज खाओ की निति से शांति हो रही है लेकिन महंगाई से ज्यादातर मार तो सिर्फ मध्यम वर्गीय लोगों को उठानी पड़ रही है. आम आदमी को अपने  महीने का बजट बनाने मैं काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. आम आदमी पहले अपना घर अपने बजट मैं चला लेता थे लेकिन अब ज़माने के साथ चलो की निति ने आदमी को आपना बजट बनाने मैं पसीने छुट रहे है. सरकारी एजेंसियों के आंकड़ो के मुताबिक महंगाई के सामने आम आदमी की मासिक आमदनी मैं भी इजाफा हुआ है. लेकिन आमदनी के सामने जो खर्च ज़ेलना पड़ रहा है वह काफी ज्यादा है.

आज हर एक आदमी के घर मैं मोटरसाइकिल से लेकर कार होती है. अगर पेट्रोल और डीज़ल के दामों की बात करे तो आदमीं की लाइफ स्टायल ऐसे हो गयी है की उसे पैदल जाये तो आवाज उठती है की पार्टी उठ गयी क्या तो उसे महंगाई मैं भी बाइक या कार लेकर जाना पड़े तो फिर तेल क दामों की बात आती है. अब ज़माने क साथ चलने के लिए उसे इन सब चीजों का सहारा तो लेना ही पड़ेगा. अब वह मासिक बजट कहाँ से तय कर पायेगा.

दूसरी बात करें तो तेल अवं रसोई गैस के दम बढ़ने से मॉल धुलाई के दाम बढ़ेंगे फिर मामला वही तरकारी, राशन के साथ आदमी को रोजाना कि चीजों के भावों मैं भी बढ़ोतरी का सामना करना पड़ रहा है.  जबकि कुछ चीजें ऐसी है कि लोगों का इसके बगैर गुजरा नहीं होता है. तो आदमी करें तो क्या करें !  आदमी को अपनी रोजाना जरूरियातों के मुताबिक तो चीजे खरदनी ही पड़ती है. आज अगर राशन कि बात करें तो राशन के दामों मैं  पिछले एक साल मैं ४० से ५० प्रतिशत कि बढ़ोतरी हुई है. लेकिन आम आदमी कि जेब कि फिकर करने के लिए सरकार के पास वक्त ही कहाँ है.

सरकार को अपनी खुर्शी सँभालने कि पड़ी है. पेट्रोल के दामों मैं हुई बढोतरी के बाद देशभर मैं आन्दोलन हुए.  लेकिन सरकार ने इस बढे दामों मैं रोलबैक करने से माना कर दिया. अब इस चीज का आम आदमी के ऊपर क्या असर पड़ेगा उसकी फिकर सिर्फ आम आदमी को ही करनी है सरकार को नहीं. वैसे भी सरकार के पास सोचने का वक्त ही कहाँ है. सरकार अगर सोचती तो तेल के दामों मैं बढ़ोतरी नहीं होती. तेल के दम बढ़ने के साथ सभी चीजों के भाव भी बढ़ जाते है.

पेट्रोल डीज़ल के दामों मैं बढ़ोतरी के साथ ही विपक्ष ने हंगामा मचा दिया और धरना देना शुरू कर दिया. लेकिन जो मुख्या मुद्दा था वह तो विपक्ष भी पीछे छोड़ आई. सांसद के आखरी सत्र मैं कट मोशन आना था लेकिन विपक्ष मैं एक जुटता न होने कि वजह से कट मोशन धरा का धरा ही राह गया. यहाँ फिर बात करें तो सरकार कि चालाकी काम कर गयी सरकार ने यहाँ पर महिला आरक्षण बिल लाकर विपक्ष मैं फूट डालने कि कोशिश कि और सरकार कामयाब भी रही. उस समय अन्दर अन्दर लड़ने कि जगह एक जुट होकर कट मोशन का सामना किया होता तो आज शायद आम आदमी कि जेब भारी नहीं होती.

अब अटलजी कि सरकार कि बात करें तो उस समय चीजों के भावों मैं इतने बढ़ोतरी नहीं हुई लेकिन उन्होंने उस समय हाई वे के निर्माण के लिए पेट्रोल के दामों मैं १ रुपये कि बढ़ोतरी कि थी और देश कि जनता को कहा था कि हिघ्वय का निर्माण ख़त्म होता है तो हम यह दम वापस खिचेंगे लेकिन आज हाईवे के काम को ख़त्म हुए सालों बीत गए और सरकार भी चली गयी लेकिन आम आदमी फिर भी वही का वही राह गया. ऊपर से टोल से पैसे ऐठने शुरू कर दिया. अब आप ही सोचो कि आप को पेट्रोल एवं डीज़ल के दामों मैं रोड टेक्स चुकाना है. आर. टी. ओ. को, फिर टोल वे को चुकाना है. तो आप एक ही वहां का टेक्स कितनी जगह चुकोगे.

मेरा तो इतना ही कहना है कि सरकार चाहे कोई भी हो अब सहन करना सिख लो..............