Friday, February 26, 2010

आज भी आज़ाद देश के नागरिक है गुलाम

मेरे दादा गुलाम थे, मेरे पापा गुलाम है। मैं भी गुलाम हूँ, और मेरे बच्चा भी गुलाम होगा। येही है इस आज़ाद देश के गुलामों की कहानी.....................     


भारत को आज़ाद हुए ६३ सा बीत जाने के बावजूद भी इस देश मैं आज भी लोग गुलामी मैं जी रहे है, ऐसा लगता है क्योंकि इस देश मैं आज भी लोगों का शोषण हो रहा है १९४७ से पहले लोग अंग्रेजों की गुलामी मैं जी रहे थे और ६३ सालों के बाद कुछ चंद अमीरों एवं नेताओं की गुलामी कर रहे देश मैं आज भी चंद गिने चुने अमीरों एवं नेताओं ने इस देश के लोगों को गुलाम बनाकर रखने की कसम खाई हो ऐसा लग रहा है

भारत देश मैं लोकशाही होने के बावजूद भी लोगों को सरकार के पास अपना हक़ मांगने के लिए आन्दोलन का सहारा लेना पड़ रहा है आन्दोलन का दौर देखा जाये तो अंग्रेजों के ज़माने से चला रहा है गाँधीजी को नमक का हक़ लेने के लिए अंग्रजों के सामने सत्याग्रह छेड़ना पड़ा था तब जा कर के नमक का हक़ भारतवासियों को मिला था आज भी IS देश मैं अगर आपकी कोई नहीं सुनता है, तो आप आन्दोलन करो तो शायद सरकारी बाबु आपकी बात पर गौर कर आपको आपका हक़ दे देवर्ना  तो इस देश मैं आपकी कोई नहीं सुनेगा आज भी देशभर मैं आपको आपका हक़ लेना हो तो आपको मोर्चा लेकर पालिका या की ऑफिस पर जाना पड़ेगा तब जा कर आपको कही आपका हक मिल पायेगा आज़ाद देश मैं रहने के बावजूद भी आन्दोलन यह कहाँ का न्याय है कभी कभी तो यह आन्दोलन हिंसक हो जाता है और देश की लाखो करोड़ों की सम्पति नष्ट हो जाती है फिर भी सरकार के बहरे कानो मैं नहीं यह सुने देता और अंधी आँखों मैं लोगों की तकलीफें दिखाई देती है

आज कोई जगह पर नौकरी जाओ तो आपके आला अधिकारी आपको चूस लेंगे खेत की उगे बेचने जाओ तो व्यापारी आपका शोषण करेंगे टेलेंट देखने की बात करो तो लोग कहंगे काम पर लग टेलेंट से पेट नहीं भरेगा। अब आपही बताओ की आज़ाद देश मैं नागरिक गुलाम बनकर नहीं जी रहा तो कैसे जी रहा है आज़ादी है कहाँ? कहीं पर भी जाओ गुलामों की तरह रहो आज कोई जगह पर नौकरी जाओ तो आपके आला अधिकारी आपको चूस लेंगे। खेत की उगे बेचने जाओ तो व्यापारी आपका शोषण करेंगे। टेलेंट देखने की बात करो तो लोग कहंगे काम पर लग टेलेंट से पेट नहीं भरेगा। अब आपही बताओ की आज़ाद देश मैं नागरिक गुलाम बनकर नहीं जी रहा तो कैसे जी रहा है। आज़ादी है कहाँ? कहीं पर भी जाओ गुलामों की तरह रहो। आज जब भारत देश दुनिया मैं एक महासत्ता की और आपना कदम बढ़ा रहा है फिर भी इस  देश मैं लोग गुलामों की तरह जिन्दगी बसर कर रहे है. इस देश मैं कही भी जाओ तो आप गुलामी महसूस करेंगे. कुछ कारण ऐसे है की इस देश के नागरिकों  को गुलाम बताते है. जैसे की हल ही मियन रेल बजेट से पहले गुजरात के लोगों को रेलवे मैं आपना हक लेने के लिए आन्दोलन का मार्ग अपनाना पड़ा. आन्दोलन के बावजूद भी गुजरात के लोगों को निराशा ही हाथ लगी. देखने जाये तो रेल मंत्री के लिए देश के सभी हिस्से एक समान होते है. फिर भी रेल मंत्रालय मैं प्रांतवाद की भाषा नजर आई. कुछ चाँद नेता आज भी प्रांतवाद के तहत देश के नागरिकों को बाट कर  देश को गुलामी की और धकेल रहे है.

इस देश मैं लोगों को जीने के लिए सिर्फ रोटी कपड़ा और माकन की जरुरत तो है. लेकिन साथ ही और भी कुछ चीजों की जरूरत भी पड़ती है. सरकार को लोगों की कहाँ पड़ी है. राजनेता सिर्फ लोगों को गुलामों की तरह जिन्दा रखना चाहते है. एक तरफ सरकार टेक्स मैं बेनिफिट दे रही है तो दूसरी तरफ पेट्रोल के भाव बढाकर लोगों की मुश्किल बढ़ा रही है.  आज रोजमर्रा की चीजों के भाव आसमान को छू रहे है तो दूसरी और सरकार पेट्रोल के दामों मैं बढ़ोतरी कर इस मुश्किल को और बढ़ने की तैयारि कर रही है.



Friday, February 12, 2010

शिव के सबसे बड़े दिन ही सेना को मिली हार

वैसे तो देखने जाये तो शिवसेना का मुंबई मैं होल्ट माना जाता था की बालासाहेब ठाकरे ने एक बार अपनी सिंह दहाड़ मरी तो पूरी मुंबई मैं सन्नाटा सा छा जाता था। यह वाही बालासाहब ठाकरे थे जिन्होंने मुंबई के खातिर ६ साल के लिए अपना मताधिकार खो दिया था। लेकिन वक्त को बढ़ाते देर नहीं लगती आइसे ही आज मुंबई मैं शिवसेना का वक्त बदल गया है। जो शिवसेना को मुंबई मैं कुछ भी करवाने के लिए सिर्फ आवाज ही लगनी पड़ती थी वाही शिवसेना के बड़े नेताओं को आज सड़क पर उतारकर आपनी बात को मनवाना पड़ रहा है। अगर आप की माय नामे इज खान फिल्म की रिलीज की बात के ऊपर ही गौर किया जाये तो शिवसेना को फिल्म की रिलीज को रोकने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है। मेहनत के बाद भी फिल्म तो मुंबई मैं रिलीज हो गयी सिर्फ लोगों ने ही नहीं मल्टी प्लेक्स मालिकों ने भी शिवसेना की बात को न मानने की मन मैं ठानी और पुलिस ने भी प्रोटेकशन दिया।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मैं शिवसेना को मिली करारी हार के चलते बौखलाई सेना को अपना अस्तित्व बरक़रार रखने के लिए कुछ तो करना ही था तो शिवसेना ने आई पी एल के मैं ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के खिलाडियों को निशाना बना कर आपनी बात मनवाकर सुर्ख़ियों मैं रहने की तयारी की। यह मसला देश की न्यूज़ चैनलों पर चल ही रहा था की शाहरुख़ के बयां को लेकर शिवसेना को लगा बुरा , फिर क्या सेना को फिर मिला नया मुद्दा। शिवसेना ने फिर से सुर्ख़ियों में रहने के लिए फिल्म को निशाना बनाकर आन्दोलन छेड़ा।
अब शिवरात्रि है जो भगवान् शिव का सबसे बड़ा दिन माना जा रहा है। उसी दिन अगर शिव के नाम से बनी सेना को आने ही गढ़ मुंबई मैं फिल्म रिलीज मैं करारी हार का सामना करना पड़ा। इस हार के पीछे अगर जानकारों की माने तो शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब के पुत्र प्रेम की वजह से राज के अलग होने से बालासाहेब का वजन मुंबई मैं कम हुआ। साथ ही देखा जाये तो शिव सेना मैं जो युवा वर्ग जुड़े थे वह सभी आज राज की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ जुड़ गए है। यह भी एक कारन था की शिवसेना की ताकत महाराष्ट्र (मुंबई) मैं कम हुई है।